समर्पण " देश और प्रेम को "
गुजरे हुए, गुज़रों की बात करतें हैं, वर्तमान हैं हम, भविष्य के पथ पर चलते हैं, वो इतिहास पढ़ते हैं , हम इतिहास लिखते हैं, वो गाते हैं गाथा बलिदानों की, और हम बलिदान करतें हैं !!
Tuesday, March 9, 2010
Monday, February 1, 2010
Thursday, January 28, 2010
Saturday, January 23, 2010
हम सब एक हैं / We are one
हिंदी में
प्रेम से देखो तो संसार एक उपवन है
हम सुमन हैं और माली वो भगवन है
उर्दू में
मोहबत से देखो ये जहाँ इक गुलज़ार है
हम सब गुल है माली वो परवरदिगार है
In English
See with Love this world like a Garden
We are flowers and the God is Gardener
प्रेम से देखो तो संसार एक उपवन है
हम सुमन हैं और माली वो भगवन है
उर्दू में
मोहबत से देखो ये जहाँ इक गुलज़ार है
हम सब गुल है माली वो परवरदिगार है
In English
See with Love this world like a Garden
We are flowers and the God is Gardener
Thursday, January 21, 2010
अधर से अधर का मिलन
अधर से अधर का मिलन होने दो
जलती सांसों कि ठंडी अगन होने दो
ऋतू यह यौवन कि है
गोरी तू सुन ले जरा
हूँ मैं मिलन को आतुर
जैसे यह गगन और धरा
हूक सी एक उठती है
रह-रह के जो तन-मन में
खत्म मीठी से यह
चुभन होने दो
अधर से अधर का मिलन होने दो
जलती सांसों कि ठंडी अगन होने दो
मैं अकेला ही
जन्मों से हूँ चलता-चला
दूर मुझसे रहोगी
तुम कब तक भला ?
अब तो बांहों भर लो
मुझे तुम जरा
अपनी जुल्फों में दे दो
तुम मुझे आसरा
ख़त्म विरह के
यह वन सघन होने दो
अधर से अधर का मिलन होने दो
जलती सांसों कि ठंडी अगन होने दो
कोयल कु-कु है क्या गाती सुनो
पुष्प हँसते हुए क्या कह रहे तुम सुनो
शीतल बहती हुए यह पावन क्या कहे
सागर कि उठती हुए लहर क्या कहे
क्या कहती है ?
कवि की कविता-ग़ज़ल तुम सुनो
यह सब कहते हैं कि
प्रेम ही जग में सबसे पावन-मधुर
सत्य इन सबके तुम कथन होने दो
दो बदन एक तन-मन होने दो
अधर से अधर का मिलन होने दो
जलती सांसों कि ठंडी अगन होने दो
Wednesday, January 20, 2010
नव भारत/ New India
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का अहवाहन करें !!
नव भारत का हम सृजन करें
६० वर्षों का हम मंथन करें !!
छल-कपट, द्वेष और भ्रष्टता का
सब मिलकर आओ दमन करें
बुराईओं का बहिर्गमन करें
अच्छाईओं का हम श्रीनमन करें !
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का अहवाहन करें !!
उंच-नीच, जाति-पाती,
नर-नारी और रूप-रंग के
खत्म हम सारे परिसीमन करें!
हर तरफ नजर आते हैं,
जो यह भूखें -नंगे लोग
आओ सब मिलकर इनके लिए
अन्न -वस्त्र का सर्जन करें!
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वाहन करें !!
बैर की सारी तलवारें रखलें
अपनी म्यानों में और
मैत्री भाव का श्री अनुकरण करें!
मिटा दें अज्ञान का अंधकूप
और ज्ञान के सूर्य का आओ,
हम सब मिलकर श्री आगमन करें!
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का अहवाहन करें !!
नव भारत का हम सृजन करें
६० वर्षों का हम मंथन करें !!
छल-कपट, द्वेष और भ्रष्टता का
सब मिलकर आओ दमन करें
बुराईओं का बहिर्गमन करें
अच्छाईओं का हम श्रीनमन करें !
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का अहवाहन करें !!
उंच-नीच, जाति-पाती,
नर-नारी और रूप-रंग के
खत्म हम सारे परिसीमन करें!
हर तरफ नजर आते हैं,
जो यह भूखें -नंगे लोग
आओ सब मिलकर इनके लिए
अन्न -वस्त्र का सर्जन करें!
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का आह्वाहन करें !!
बैर की सारी तलवारें रखलें
अपनी म्यानों में और
मैत्री भाव का श्री अनुकरण करें!
मिटा दें अज्ञान का अंधकूप
और ज्ञान के सूर्य का आओ,
हम सब मिलकर श्री आगमन करें!
चलो पूर्ण स्वतंत्रता का अहवाहन करें !!
Subscribe to:
Posts (Atom)